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Thursday 14 January 2016

सिसकती साँसों से पूछो,मेरा क्या है?

सिसकती साँसों सेपूछो,
वक्त का पहराक्या है ?
रजनी लपेटे सफेदीमें,
शशि में इतना,
गहरा क्या है?
है भान नभके,
भानु प्रताप को,
लबों पे लालिमालिए,
सवेरा क्या है?
क्यूँ गुलशन करता,
नाज इतना शुलोंपे,
है एहसास गुलोंको,
भंवरों का पहराक्या है?
क्षितिज को साहिलोंसे मिलाती,
सागर पे लहराती,
सरगम-सी लहरोंका,
बसेरा क्या है?
माटी से माटीतक का सफ़र,
जानता है सिर्फवो कुम्हार
कि इस खोखलेखिलौने का,

चेहरा क्या है?

सिसकती साँसों से पूछो,मेरा क्या है?

सिसकती साँसों सेपूछो,
वक्त का पहराक्या है ?
रजनी लपेटे सफेदीमें,
शशि में इतना,
गहरा क्या है?
है भान नभके,
भानु प्रताप को,
लबों पे लालिमालिए,
सवेरा क्या है?
क्यूँ गुलशन करता,
नाज इतना शुलोंपे,
है एहसास गुलोंको,
भंवरों का पहराक्या है?
क्षितिज को साहिलोंसे मिलाती,
सागर पे लहराती,
सरगम-सी लहरोंका,
बसेरा क्या है?
माटी से माटीतक का सफ़र,
जानता है सिर्फवो कुम्हार
कि इस खोखलेखिलौने का,

चेहरा क्या है?

Tuesday 20 March 2012

उठो लल्लू दारु लाया कुल्ला कर लो



                                   उठो लल्लू
              अब आँखे खोलो
                दारू लाया
                कुल्ला कर लो
          बीती रात बहुत चड़ाई
         तुमने की ना रत्ती भर पढाई
         एक्ज़ाम का वक्त है भाई
        खोलो पोथी पुस्तक
         २-४ आखर पडलो साईं
           टॉप तो मार ना पाओगे
          चिट नहीं बनाई तो
            पास भी नहीं हो पाओगे
               होंश में आओ लल्लू
              बंद करो अब बनना उल्लू
              ओ ढर्रों पव्वों के गणपत
           अच्छी नहीं सुट्टों की लत
              फिर ना गिडगिडाना कि
              तुमने बताया नहीं दोस्त
              तुमने बताया नहीं दोस्त 
                



उठो लल्लू दारु लाया कुल्ला कर लो



                                   उठो लल्लू
              अब आँखे खोलो
                दारू लाया
                कुल्ला कर लो
          बीती रात बहुत चड़ाई
         तुमने की ना रत्ती भर पढाई
         एक्ज़ाम का वक्त है भाई
        खोलो पोथी पुस्तक
         २-४ आखर पडलो साईं
           टॉप तो मार ना पाओगे
          चिट नहीं बनाई तो
            पास भी नहीं हो पाओगे
               होंश में आओ लल्लू
              बंद करो अब बनना उल्लू
              ओ ढर्रों पव्वों के गणपत
           अच्छी नहीं सुट्टों की लत
              फिर ना गिडगिडाना कि
              तुमने बताया नहीं दोस्त
              तुमने बताया नहीं दोस्त 
                



उठो लल्लू दारु लाया कुल्ला कर लो



                                   उठो लल्लू
              अब आँखे खोलो
                दारू लाया
                कुल्ला कर लो
          बीती रात बहुत चड़ाई
         तुमने की ना रत्ती भर पढाई
         एक्ज़ाम का वक्त है भाई
        खोलो पोथी पुस्तक
         २-४ आखर पडलो साईं
           टॉप तो मार ना पाओगे
          चिट नहीं बनाई तो
            पास भी नहीं हो पाओगे
               होंश में आओ लल्लू
              बंद करो अब बनना उल्लू
              ओ ढर्रों पव्वों के गणपत
           अच्छी नहीं सुट्टों की लत
              फिर ना गिडगिडाना कि
              तुमने बताया नहीं दोस्त
              तुमने बताया नहीं दोस्त 
                



Tuesday 6 March 2012

जाने किस बरसात,बुझेगी मेरी प्यास




उसकी याद दिलाती हे ,

उसका चेहरा बताती हे,

मंद-मंद बहते हुए यूँ

गुनगुनाती हे उसका नाम,

ये ढलती हुई शाम |

उसके प्यार का विश्वाश दिलाती हे,

उसके प्यार का एहसास दिलाती हे,

चोरी-चोरी,चुपके -चुपके यूँ

मुजको सुनाती हे उसका पैगाम,

ये ढलती हुई शाम |

धीरे-धीरे से ढलती जाती हे,

उसका हर हाले दिल सुनाती हे,

कभी मै ना मिलूं उसको तो  यूँ 

मचा देती हे भयंकर कोहराम,

ये ढलती हुई शाम |

किरणों में उसकी आँखे चमकती हे,

हर तरफ सिर्फ उसकी झलक छलकती हे,

ऐसे -वैसे बलखाती,लहराती यूँ

मेरे दिल को देती हे सुकून-ओ-आराम,

ये ढलती हुई शाम |

मुज पर शबनम-सी छा जाती हे,

मुझे अपने में समाँ लेती हे ,

हर घड़ी हर पल हर लम्हा यूँ

उसकी मोहब्बत का पिलाती हे जाम,

ये ढलती हुई शाम |


जाने किस बरसात,बुझेगी मेरी प्यास




उसकी याद दिलाती हे ,

उसका चेहरा बताती हे,

मंद-मंद बहते हुए यूँ

गुनगुनाती हे उसका नाम,

ये ढलती हुई शाम |

उसके प्यार का विश्वाश दिलाती हे,

उसके प्यार का एहसास दिलाती हे,

चोरी-चोरी,चुपके -चुपके यूँ

मुजको सुनाती हे उसका पैगाम,

ये ढलती हुई शाम |

धीरे-धीरे से ढलती जाती हे,

उसका हर हाले दिल सुनाती हे,

कभी मै ना मिलूं उसको तो  यूँ 

मचा देती हे भयंकर कोहराम,

ये ढलती हुई शाम |

किरणों में उसकी आँखे चमकती हे,

हर तरफ सिर्फ उसकी झलक छलकती हे,

ऐसे -वैसे बलखाती,लहराती यूँ

मेरे दिल को देती हे सुकून-ओ-आराम,

ये ढलती हुई शाम |

मुज पर शबनम-सी छा जाती हे,

मुझे अपने में समाँ लेती हे ,

हर घड़ी हर पल हर लम्हा यूँ

उसकी मोहब्बत का पिलाती हे जाम,

ये ढलती हुई शाम |


जाने किस बरसात,बुझेगी मेरी प्यास




उसकी याद दिलाती हे ,

उसका चेहरा बताती हे,

मंद-मंद बहते हुए यूँ

गुनगुनाती हे उसका नाम,

ये ढलती हुई शाम |

उसके प्यार का विश्वाश दिलाती हे,

उसके प्यार का एहसास दिलाती हे,

चोरी-चोरी,चुपके -चुपके यूँ

मुजको सुनाती हे उसका पैगाम,

ये ढलती हुई शाम |

धीरे-धीरे से ढलती जाती हे,

उसका हर हाले दिल सुनाती हे,

कभी मै ना मिलूं उसको तो  यूँ 

मचा देती हे भयंकर कोहराम,

ये ढलती हुई शाम |

किरणों में उसकी आँखे चमकती हे,

हर तरफ सिर्फ उसकी झलक छलकती हे,

ऐसे -वैसे बलखाती,लहराती यूँ

मेरे दिल को देती हे सुकून-ओ-आराम,

ये ढलती हुई शाम |

मुज पर शबनम-सी छा जाती हे,

मुझे अपने में समाँ लेती हे ,

हर घड़ी हर पल हर लम्हा यूँ

उसकी मोहब्बत का पिलाती हे जाम,

ये ढलती हुई शाम |


Wednesday 29 February 2012

काश,मेरे सिने में भी दिल होता पारो


काश, की मेरे सिने में भी दिल होता,
मेरे ना सही, किसी और के सिने में धड़कता,
उसके एहसासों का मनचला मंज़र,
यूँ मेरी साँसों की लहरों से गुजरता,
वो आंहें भरती तन्हाई में और
मुझे उसकी महफ़िल का खुमार होता,
काश, की मेरे सिने में भी दिल होता...!

वो सोती मेरे ख्यालों की सेज पर,
उसके ख्वाबों का कारवाँ मेरी आँखों में होता,
काली-काली घनेरी घनघोर रातों में,
प्यार भरी रोशनी से रोशन सिलसिला होता,
काश, की मेरे सिने में भी दिल होता...!