दौर-ऐ-जहाँ की यादें बेशुमार,
ख़्याल-ऐ-शान में है,
गुज़रा हुआ एक-एक लम्हा,
गुरुकुल का ध्यान में है |
उस ज़मीं के ज़र्रे-ज़र्रे को,
कैसे इतिहास मुकरर कर दूँ ,
जिसका मेरी रूह में वात्सल्य वादन,
जो का त्यों वर्तमान में है |
वक्त ने महज ज़िल्द बदली है,
कारवाँ-ऐ-किताबों की,
शब्दों का लिबाज़ और अंदाज़,
आज भी वही खून-ऐ-खान में है |
वो रुखसार,वो प्यार,
वो ज्ञान की गंगा का असीम उदगार,
जैसे जान-ऐ-जन्नत-जहाँ,
आज भी उसी खानदान में है |
क्या खोया क्या पाया इस "अज्ञात" ने,
अल्फ़ाज़ों में हो सकता नहीं बयाँ,
सर्वस्व विविन की तरूणाई,
और लहराते लबों की मुस्कान में है |
jnv ,,,,,,,,,,,,,,{ अरुण"अज्ञात" }