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Tuesday 12 July 2016

Midnight Romance With Sheet In Rainfall !




सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
चारों तरफ बिजली की वो खौफनाक चमक,
और तेज तूफानी हवाओं के थपेड़ों के सहारे,
यूँ रिमझिम-रिमझिम बरसती नन्ही-नन्ही बुँदे,
उस रात एक शर्मनाक शरारत मेरे साथ हो गई,
अक्सर ख़्वाबों में मेरा आलिंगन करने वाली कोमलान्गिनी,
आज कैसे भला, मुझसे यूँ हमबिस्तर हो गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
फिर क्या था, नज़रों-नजर नजारा सुहागरात-सा,
बिस्तर पर कच्ची कलियों की महक-सी महक हो गई,
धड़कन बढने लगी और साँसें तेज हो गई,
कभी मै उसके ऊपर,कभी वो मेरे ऊपर,
बस एक दूजे को पाने की,एक दूजे में समा जाने की,
बेइंतहा अनवरत जद्दोजहद शुरू हो गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
कभी उसका अध्-बदनांग बिस्तर से निचे हो जाता,
कभी मेरा अध्-शरीरांग बिस्तर से निचे हो जाता,
और कभी-कभी तो हम दोनों ही बिस्तर से निचे गिर जाते,
मै, वो और बिस्तर, बस रजनी जैसे थम-सी गई |
सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
कभी बिस्तर पर वो मुझे तलाशती,
कभी बिस्तर पर मै उसे तलाशता,
और कभी-कभी तो बेहद कसके लिपट जाते,
मेरी बैचेनी, मेरी तड़प, मेरी कसक यूँ बढ़ती गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
बस थी तमन्ना दो जिस्म एक जान हो जाने की,
उस असीम परमानंद और चरम सीमा को पाने की,
अंग-अंग हमारे कुछ यूँ अंगीकार हो गए,
तन-बदन में वासना की ज्वाला दहक उठी,
सारी कसमे, सारे वादे उस रात बेकार हो गए |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
ख्वाब में कुछ ऐसे हो गए थे मेरे हालात,
पर भला हो उस दूध वाले दादा का,
अगर वो मौक़ा-ऐ-वारदात पे घंटी न बजाता,
...तो शायद मेरी नई-नवेली मखमली चादर का,
उस रात बड़ा बुरा हाल हो जाता,

और मै किसी को मुंह दिखाने लायक न रहता !!!

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Midnight Romance With Sheet In Rainfall





सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
चारों तरफ बिजली की वो खौफनाक चमक,
और तेज तूफानी हवाओं के थपेड़ों के सहारे,
यूँ रिमझिम-रिमझिम बरसती नन्ही-नन्ही बुँदे,
उस रात एक शर्मनाक शरारत मेरे साथ हो गई,
अक्सर ख़्वाबों में मेरा आलिंगन करने वाली कोमलान्गिनी,
आज कैसे भला, मुझसे यूँ हमबिस्तर हो गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
फिर क्या था, नज़रों-नजर नजारा सुहागरात-सा,
बिस्तर पर कच्ची कलियों की महक-सी महक हो गई,
धड़कन बढने लगी और साँसें तेज हो गई,
कभी मै उसके ऊपर,कभी वो मेरे ऊपर,
बस एक दूजे को पाने की,एक दूजे में समा जाने की,
बेइंतहा अनवरत जद्दोजहद शुरू हो गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
कभी उसका अध्-बदनांग बिस्तर से निचे हो जाता,
कभी मेरा अध्-शरीरांग बिस्तर से निचे हो जाता,
और कभी-कभी तो हम दोनों ही बिस्तर से निचे गिर जाते,
मै, वो और बिस्तर, बस रजनी जैसे थम-सी गई |
सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
कभी बिस्तर पर वो मुझे तलाशती,
कभी बिस्तर पर मै उसे तलाशता,
और कभी-कभी तो बेहद कसके लिपट जाते,
मेरी बैचेनी, मेरी तड़प, मेरी कसक यूँ बढ़ती गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
बस थी तमन्ना दो जिस्म एक जान हो जाने की,
उस असीम परमानंद और चरम सीमा को पाने की,
अंग-अंग हमारे कुछ यूँ अंगीकार हो गए,
तन-बदन में वासना की ज्वाला दहक उठी,
सारी कसमे, सारे वादे उस रात बेकार हो गए |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
ख्वाब में कुछ ऐसे हो गए थे मेरे हालात,
पर भला हो उस दूध वाले दादा का,
अगर वो मौक़ा-ऐ-वारदात पे घंटी न बजाता,
...तो शायद मेरी नई-नवेली मखमली चादर का,
उस रात बड़ा बुरा हाल हो जाता,

और मै किसी को मुंह दिखाने लायक न रहता !!!


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सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
चारों तरफ बिजली की वो खौफनाक चमक,
और तेज तूफानी हवाओं के थपेड़ों के सहारे,
यूँ रिमझिम-रिमझिम बरसती नन्ही-नन्ही बुँदे,
उस रात एक शर्मनाक शरारत मेरे साथ हो गई,
अक्सर ख़्वाबों में मेरा आलिंगन करने वाली कोमलान्गिनी,
आज कैसे भला, मुझसे यूँ हमबिस्तर हो गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
फिर क्या था, नज़रों-नजर नजारा सुहागरात-सा,
बिस्तर पर कच्ची कलियों की महक-सी महक हो गई,
धड़कन बढने लगी और साँसें तेज हो गई,
कभी मै उसके ऊपर,कभी वो मेरे ऊपर,
बस एक दूजे को पाने की,एक दूजे में समा जाने की,
बेइंतहा अनवरत जद्दोजहद शुरू हो गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
कभी उसका अध्-बदनांग बिस्तर से निचे हो जाता,
कभी मेरा अध्-शरीरांग बिस्तर से निचे हो जाता,
और कभी-कभी तो हम दोनों ही बिस्तर से निचे गिर जाते,
मै, वो और बिस्तर, बस रजनी जैसे थम-सी गई |
सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
कभी बिस्तर पर वो मुझे तलाशती,
कभी बिस्तर पर मै उसे तलाशता,
और कभी-कभी तो बेहद कसके लिपट जाते,
मेरी बैचेनी, मेरी तड़प, मेरी कसक यूँ बढ़ती गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
बस थी तमन्ना दो जिस्म एक जान हो जाने की,
उस असीम परमानंद और चरम सीमा को पाने की,
अंग-अंग हमारे कुछ यूँ अंगीकार हो गए,
तन-बदन में वासना की ज्वाला दहक उठी,
सारी कसमे, सारे वादे उस रात बेकार हो गए |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
ख्वाब में कुछ ऐसे हो गए थे मेरे हालात,
पर भला हो उस दूध वाले दादा का,
अगर वो मौक़ा-ऐ-वारदात पे घंटी न बजाता,
...तो शायद मेरी नई-नवेली मखमली चादर का,
उस रात बड़ा बुरा हाल हो जाता,

और मै किसी को मुंह दिखाने लायक न रहता !!!


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सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
चारों तरफ बिजली की वो खौफनाक चमक,
और तेज तूफानी हवाओं के थपेड़ों के सहारे,
यूँ रिमझिम-रिमझिम बरसती नन्ही-नन्ही बुँदे,
उस रात एक शर्मनाक शरारत मेरे साथ हो गई,
अक्सर ख़्वाबों में मेरा आलिंगन करने वाली कोमलान्गिनी,
आज कैसे भला, मुझसे यूँ हमबिस्तर हो गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
फिर क्या था, नज़रों-नजर नजारा सुहागरात-सा,
बिस्तर पर कच्ची कलियों की महक-सी महक हो गई,
धड़कन बढने लगी और साँसें तेज हो गई,
कभी मै उसके ऊपर,कभी वो मेरे ऊपर,
बस एक दूजे को पाने की,एक दूजे में समा जाने की,
बेइंतहा अनवरत जद्दोजहद शुरू हो गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
कभी उसका अध्-बदनांग बिस्तर से निचे हो जाता,
कभी मेरा अध्-शरीरांग बिस्तर से निचे हो जाता,
और कभी-कभी तो हम दोनों ही बिस्तर से निचे गिर जाते,
मै, वो और बिस्तर, बस रजनी जैसे थम-सी गई |
सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
कभी बिस्तर पर वो मुझे तलाशती,
कभी बिस्तर पर मै उसे तलाशता,
और कभी-कभी तो बेहद कसके लिपट जाते,
मेरी बैचेनी, मेरी तड़प, मेरी कसक यूँ बढ़ती गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
बस थी तमन्ना दो जिस्म एक जान हो जाने की,
उस असीम परमानंद और चरम सीमा को पाने की,
अंग-अंग हमारे कुछ यूँ अंगीकार हो गए,
तन-बदन में वासना की ज्वाला दहक उठी,
सारी कसमे, सारे वादे उस रात बेकार हो गए |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
ख्वाब में कुछ ऐसे हो गए थे मेरे हालात,
पर भला हो उस दूध वाले दादा का,
अगर वो मौक़ा-ऐ-वारदात पे घंटी न बजाता,
...तो शायद मेरी नई-नवेली मखमली चादर का,
उस रात बड़ा बुरा हाल हो जाता,

और मै किसी को मुंह दिखाने लायक न रहता !!!


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सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
चारों तरफ बिजली की वो खौफनाक चमक,
और तेज तूफानी हवाओं के थपेड़ों के सहारे,
यूँ रिमझिम-रिमझिम बरसती नन्ही-नन्ही बुँदे,
उस रात एक शर्मनाक शरारत मेरे साथ हो गई,
अक्सर ख़्वाबों में मेरा आलिंगन करने वाली कोमलान्गिनी,
आज कैसे भला, मुझसे यूँ हमबिस्तर हो गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
फिर क्या था, नज़रों-नजर नजारा सुहागरात-सा,
बिस्तर पर कच्ची कलियों की महक-सी महक हो गई,
धड़कन बढने लगी और साँसें तेज हो गई,
कभी मै उसके ऊपर,कभी वो मेरे ऊपर,
बस एक दूजे को पाने की,एक दूजे में समा जाने की,
बेइंतहा अनवरत जद्दोजहद शुरू हो गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
कभी उसका अध्-बदनांग बिस्तर से निचे हो जाता,
कभी मेरा अध्-शरीरांग बिस्तर से निचे हो जाता,
और कभी-कभी तो हम दोनों ही बिस्तर से निचे गिर जाते,
मै, वो और बिस्तर, बस रजनी जैसे थम-सी गई |
सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
कभी बिस्तर पर वो मुझे तलाशती,
कभी बिस्तर पर मै उसे तलाशता,
और कभी-कभी तो बेहद कसके लिपट जाते,
मेरी बैचेनी, मेरी तड़प, मेरी कसक यूँ बढ़ती गई |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
बस थी तमन्ना दो जिस्म एक जान हो जाने की,
उस असीम परमानंद और चरम सीमा को पाने की,
अंग-अंग हमारे कुछ यूँ अंगीकार हो गए,
तन-बदन में वासना की ज्वाला दहक उठी,
सारी कसमे, सारे वादे उस रात बेकार हो गए |

सर्द बरसात की वो काली अँधेरी भयानक रात...
ख्वाब में कुछ ऐसे हो गए थे मेरे हालात,
पर भला हो उस दूध वाले दादा का,
अगर वो मौक़ा-ऐ-वारदात पे घंटी न बजाता,
...तो शायद मेरी नई-नवेली मखमली चादर का,
उस रात बड़ा बुरा हाल हो जाता,

और मै किसी को मुंह दिखाने लायक न रहता !!!


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Thursday 12 May 2016

“हाय ! तेरे होठों की लाली...”


तीर नयन के मारे थे,
हम पर कितने किये इशारे थे,
कितने तुम्हारे चहिते,
कितने तुम्हारे प्यारे थे,
उम्र थी वह बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


मन के आँगन में,
सपनो के दामन में,
खिले-खिले यौवन में,
लगती थी शराब की प्याली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


वो आँखों का नशिलापन,
हाथों में खनकते सतरंगी कंगन,
गोरे-गोरे गालों का गुलाबीपन,
और नाक पर बलखाती बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


चाल में तेरी वो लचीलापन,
यूँ उभरता हुआ तेरा गुलबदन,
उस पर पायलों की बजती छन-छन,
और वो अदा तेरी मतवाली,
कसम से लगती थी कच्ची कली,
हाय ! तेरे होठों की लाली.......!!!!