human nature and philosophy |
फर्श से अर्श तलक का ये विचित्र-सा फासला बार-बार अनवरत यह सोचने पर बेचैन करता है,कि मानवता की इस श्रृंखला को किन सर्वस्व अवधारणाओं से परिभाषित करूँ या चिन्हित करूँ | महज मुखोटों की तर्ज़ पर या फिर ह्रदय-स्थल की भावभंगिमाओं पर मानवता रूपी इश्वर की इस तिलिस्मी और बेहद पेचीदा कलाकृति का आंकलन या अवलोकन नहीं किया जा सकता | जहां तथाकथिक इश्वर को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ने अपना पालनहार माना है वहीँ इश्वर ने एहसासों और विश्वासों को आधारबिन्दु घोषित कर खुद के होने का प्रमाण अवतरित किया है |
इतिहास के गर्भ को अगर हम याद करे तो मानव भी कभी जानवर था यह वर्तमान में स्वघोषित कटु सत्य नकारा नहीं जा सकता | और बड़ी दिलचस्प बात यह भी है की हमने यानि मानव ने प्रगति की मगर कैसी प्रगति ? यह प्रश्न अपने आप में एक पहेली है | एक तरफ जहाँ हम अन्य जिव-जंतुओं को भी प्राकृतिक तौर पर जानवर मानते है वहीँ दूसरी तरफ कभी-कभी हम इन जानवरों को मानसिक,शारीरिक और भावनात्मक पहलुओं में नाप-तौल कर मानव से ज्यादा समझदार और वफादार मानते है | बड़ी ही विचित्र और शर्मोशार कर देने वाली मगर सो टका सर्वमान्य सच्चाई है यह | धार्मिक प्रवृति के परिपेक्ष में एक मजेदार बात जहन में किसी मधुर संगीत की तरह सुकून पैदा करती है कि हर एक आत्मा परमात्मा का अंश है |
कहने का मतलब यह है कि हर आत्मा परमात्मा है | मगर यह यथार्थवादी विचार सिर्फ चंद शब्दों का लेखा-जोखा मात्र बनकर रह गया है | चूँकि मै लेखक होने के नाते एसा आलेख मात्र आपके दृष्टि-पटल पर उज्जवलित कर रहा हूँ वरना मै कोई “राजा हरिश्चंद की औलाद” नहीं जो सत्य पर सर्वस्व मानवजाति कुर्बान कर दूँ थोडा झूट तो मानव के खून में जन्म से ही अंगडाइयां लेना शुरू कर देता है मतलब आटे में नमक जितना ताकि सच का स्वाद बना रहे | एक अहम् बाद यह भी है की हम जानवरों को उनकी जीवनशैली,खान-पान,रहन-सहन,और प्रवृतियों के आधार और मापदंड से उनकी मनः स्थिति और वास्तविकता से भलीभांति रूबरू हो जाते है |
human nature evolution or devolution |
लेकिन,लेकिन मानव और मानवता के लिए सो बार तौबा-तौबा, एसा इसलिए की मानव बहरूपिया है और मानवता रूपों की रानी | एक कटु कहावत है कि “मुख में राम बगल में छुरी” बस यही पर आकर मानवता दम तौड़ देती है और मानव बेचारा सच्चाई का साथ छोड़ देता है | और जो मानव मति,मान और मजबूती से द्रड़ संकल्प के साथ विजय पथ पर बड़ता जाता है वह असली कुंदन कहलाता है | आज के मानव को तो मै परिभाषित नहीं कर सकता इसलिए आप अपने विवेक से तय करे कौन मानव है और कौन नहीं ?
Source- Rupali Kumaari
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