ये कैसी गरमी है ........
कहीं इंसानियत पे अत्याचार
तो कहीं हेवानियत और बेशर्मी है .....२
किसे बयां करूँ ?
ये शब्दों की सहानुभूति...
तो कहीं धर्मान्ध अधर्मी है......२
ऐ ग़ालिब तेरे शहर में
ये कैसी गरमी है ......?
कहीं खुल रहा
अय्याशी का बाज़ार,
तो कहीं बढ़ रही कुकर्मी है .....२
निति के दोहे अब
किसी को रास नहीं आते....
कहीं वेश्याओं का व्यापार
तो कहीं इंसानों में नदारद नरमी है ....२
ऐ ग़ालिब तेरे शहर में...
ये कैसी गरमी है ,,,,,,?
अरुण "@ज्ञात" पंचोली