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“हाय ! तेरे होठों की लाली...”


तीर नयन के मारे थे,
हम पर कितने किये इशारे थे,
कितने तुम्हारे चहिते,
कितने तुम्हारे प्यारे थे,
उम्र थी वह बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


मन के आँगन में,
सपनो के दामन में,
खिले-खिले यौवन में,
लगती थी शराब की प्याली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


वो आँखों का नशिलापन,
हाथों में खनकते सतरंगी कंगन,
गोरे-गोरे गालों का गुलाबीपन,
और नाक पर बलखाती बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


चाल में तेरी वो लचीलापन,
यूँ उभरता हुआ तेरा गुलबदन,
उस पर पायलों की बजती छन-छन,
और वो अदा तेरी मतवाली,
कसम से लगती थी कच्ची कली,
हाय ! तेरे होठों की लाली.......!!!!


हाय : तेरे होठों की लाली


तीर नयन के मारे थे,
हम पर कितने किये इशारे थे,
कितने तुम्हारे चहिते,
कितने तुम्हारे प्यारे थे,
उम्र थी वह बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


मन के आँगन में,
सपनो के दामन में,
खिले-खिले यौवन में,
लगती थी शराब की प्याली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


वो आँखों का नशिलापन,
हाथों में खनकते सतरंगी कंगन,
गोरे-गोरे गालों का गुलाबीपन,
और नाक पर बलखाती बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


चाल में तेरी वो लचीलापन,
यूँ उभरता हुआ तेरा गुलबदन,
उस पर पायलों की बजती छन-छन,
और वो अदा तेरी मतवाली,
कसम से लगती थी कच्ची कली,
हाय ! तेरे होठों की लाली.......!!!!

हाय : तेरे होठों की लाली


तीर नयन के मारे थे,
हम पर कितने किये इशारे थे,
कितने तुम्हारे चहिते,
कितने तुम्हारे प्यारे थे,
उम्र थी वह बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


मन के आँगन में,
सपनो के दामन में,
खिले-खिले यौवन में,
लगती थी शराब की प्याली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


वो आँखों का नशिलापन,
हाथों में खनकते सतरंगी कंगन,
गोरे-गोरे गालों का गुलाबीपन,
और नाक पर बलखाती बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


चाल में तेरी वो लचीलापन,
यूँ उभरता हुआ तेरा गुलबदन,
उस पर पायलों की बजती छन-छन,
और वो अदा तेरी मतवाली,
कसम से लगती थी कच्ची कली,
हाय ! तेरे होठों की लाली.......!!!!

हाय : तेरे होठों की लाली


तीर नयन के मारे थे,
हम पर कितने किये इशारे थे,
कितने तुम्हारे चहिते,
कितने तुम्हारे प्यारे थे,
उम्र थी वह बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


मन के आँगन में,
सपनो के दामन में,
खिले-खिले यौवन में,
लगती थी शराब की प्याली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


वो आँखों का नशिलापन,
हाथों में खनकते सतरंगी कंगन,
गोरे-गोरे गालों का गुलाबीपन,
और नाक पर बलखाती बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


चाल में तेरी वो लचीलापन,
यूँ उभरता हुआ तेरा गुलबदन,
उस पर पायलों की बजती छन-छन,
और वो अदा तेरी मतवाली,
कसम से लगती थी कच्ची कली,
हाय ! तेरे होठों की लाली.......!!!!

हाय : तेरे होठों की लाली


तीर नयन के मारे थे,
हम पर कितने किये इशारे थे,
कितने तुम्हारे चहिते,
कितने तुम्हारे प्यारे थे,
उम्र थी वह बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


मन के आँगन में,
सपनो के दामन में,
खिले-खिले यौवन में,
लगती थी शराब की प्याली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


वो आँखों का नशिलापन,
हाथों में खनकते सतरंगी कंगन,
गोरे-गोरे गालों का गुलाबीपन,
और नाक पर बलखाती बाली,
हाय ! तेरे होठों की लाली...


चाल में तेरी वो लचीलापन,
यूँ उभरता हुआ तेरा गुलबदन,
उस पर पायलों की बजती छन-छन,
और वो अदा तेरी मतवाली,
कसम से लगती थी कच्ची कली,
हाय ! तेरे होठों की लाली.......!!!!

"कातिल जवानी और भड़कते अरमान"



कश्मकश के इस दौर में,
जिंदगी की ख्वाइश कर ली |
तपते इस रेत के सेहरा में,
हमने इक छांव की गुजारिश कर ली |
तुम्हारे पहलू में आकर हमने,
फिर से,तुम्हे पाने की साज़िश कर ली |
इश्क के ज़र्रे जब से हमें लगे आजमाने,
हमने भी दिल्लगी की ख्वाइश कर ली |
तोड़ने के लिए गुलों का गुमान-ऐ-गुरुर,
शुलों से लहुलुहान होने की फरमाइश कर ली |
दीवानगी का सुरूर कुछ ऐसा छाया हम पर,
कि तमाम ज़िन्दगी राँझा-मजनू-सी लावारिस कर ली |

कातिल जवानी और भड़कते अरमान


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कश्मकश के इस दौर में,
जिंदगी की ख्वाइश कर ली |
तपते इस रेत के सेहरा में,
हमने इक छांव की गुजारिश कर ली |
तुम्हारे पहलू में आकर हमने,
फिर से,तुम्हे पाने की साज़िश कर ली |
इश्क के ज़र्रे जब से हमें लगे आजमाने,
हमने भी दिल्लगी की ख्वाइश कर ली |
तोड़ने के लिए गुलों का गुमान-ऐ-गुरुर,
शुलों से लहुलुहान होने की फरमाइश कर ली |
दीवानगी का सुरूर कुछ ऐसा छाया हम पर,
कि तमाम ज़िन्दगी राँझा-मजनू-सी लावारिस कर ली |

कातिल जवानी और भड़कते अरमान


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कश्मकश के इस दौर में,
जिंदगी की ख्वाइश कर ली |
तपते इस रेत के सेहरा में,
हमने इक छांव की गुजारिश कर ली |
तुम्हारे पहलू में आकर हमने,
फिर से,तुम्हे पाने की साज़िश कर ली |
इश्क के ज़र्रे जब से हमें लगे आजमाने,
हमने भी दिल्लगी की ख्वाइश कर ली |
तोड़ने के लिए गुलों का गुमान-ऐ-गुरुर,
शुलों से लहुलुहान होने की फरमाइश कर ली |
दीवानगी का सुरूर कुछ ऐसा छाया हम पर,
कि तमाम ज़िन्दगी राँझा-मजनू-सी लावारिस कर ली |

कातिल जवानी और भड़कते अरमान


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कश्मकश के इस दौर में,
जिंदगी की ख्वाइश कर ली |
तपते इस रेत के सेहरा में,
हमने इक छांव की गुजारिश कर ली |
तुम्हारे पहलू में आकर हमने,
फिर से,तुम्हे पाने की साज़िश कर ली |
इश्क के ज़र्रे जब से हमें लगे आजमाने,
हमने भी दिल्लगी की ख्वाइश कर ली |
तोड़ने के लिए गुलों का गुमान-ऐ-गुरुर,
शुलों से लहुलुहान होने की फरमाइश कर ली |
दीवानगी का सुरूर कुछ ऐसा छाया हम पर,
कि तमाम ज़िन्दगी राँझा-मजनू-सी लावारिस कर ली |

कातिल जवानी और भड़कते अरमान


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कश्मकश के इस दौर में,
जिंदगी की ख्वाइश कर ली |
तपते इस रेत के सेहरा में,
हमने इक छांव की गुजारिश कर ली |
तुम्हारे पहलू में आकर हमने,
फिर से,तुम्हे पाने की साज़िश कर ली |
इश्क के ज़र्रे जब से हमें लगे आजमाने,
हमने भी दिल्लगी की ख्वाइश कर ली |
तोड़ने के लिए गुलों का गुमान-ऐ-गुरुर,
शुलों से लहुलुहान होने की फरमाइश कर ली |
दीवानगी का सुरूर कुछ ऐसा छाया हम पर,
कि तमाम ज़िन्दगी राँझा-मजनू-सी लावारिस कर ली |

जाने किस बरसात, बुझेगी मेरी प्यास ???




उसकी याद दिलाती हे ,

उसका चेहरा बताती हे,

मंद-मंद बहते हुए यूँ---

गुनगुनाती हे उसका नाम,

ये ढलती हुई शाम |

उसके प्यार का विश्वाश दिलाती हे,

उसके प्यार का एहसास दिलाती हे,

चोरी-चोरी,चुपके -चुपके यूँ ---

मुजको सुनाती हे उसका पैगाम,

ये ढलती हुई शाम |

धीरे-धीरे से ढलती जाती हे,

उसका हर हाले दिल सुनाती हे,

कभी मै ना मिलूं उसको तो  यूँ ---

मचा देती हे भयंकर कोहराम,

ये ढलती हुई शाम |

किरणों में उसकी आँखे चमकती हे,

हर तरफ सिर्फ उसकी झलक छलकती हे,

ऐसे -वैसे बलखाती,लहराती यूँ---

मेरे दिल को देती हे सुकून-ओ-आराम,

ये ढलती हुई शाम |

मुज पर शबनम-सी छा जाती हे,

मुझे अपने में समाँ लेती हे ,

हर घड़ी हर पल हर लम्हा यूँ---

उसकी मोहब्बत का पिलाती हे जाम,

ये ढलती हुई शाम |

................Pancho

जाने किस बरसात, बुझेगी मेरी प्यास ???




उसकी याद दिलाती हे ,

उसका चेहरा बताती हे,

मंद-मंद बहते हुए यूँ---

गुनगुनाती हे उसका नाम,

ये ढलती हुई शाम |

उसके प्यार का विश्वाश दिलाती हे,

उसके प्यार का एहसास दिलाती हे,

चोरी-चोरी,चुपके -चुपके यूँ ---

मुजको सुनाती हे उसका पैगाम,

ये ढलती हुई शाम |

धीरे-धीरे से ढलती जाती हे,

उसका हर हाले दिल सुनाती हे,

कभी मै ना मिलूं उसको तो  यूँ ---

मचा देती हे भयंकर कोहराम,

ये ढलती हुई शाम |

किरणों में उसकी आँखे चमकती हे,

हर तरफ सिर्फ उसकी झलक छलकती हे,

ऐसे -वैसे बलखाती,लहराती यूँ---

मेरे दिल को देती हे सुकून-ओ-आराम,

ये ढलती हुई शाम |

मुज पर शबनम-सी छा जाती हे,

मुझे अपने में समाँ लेती हे ,

हर घड़ी हर पल हर लम्हा यूँ---

उसकी मोहब्बत का पिलाती हे जाम,

ये ढलती हुई शाम |

................Pancho