Showing posts with label drought. Show all posts
Showing posts with label drought. Show all posts

“कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै ?”


लेकर अपने सूखे कंठ को
किस दरिया किनारे जाऊं मै,
सूखे-सूखे इन होठों को बताओ,
कहाँ जाकर तरबतर कर आऊं मै |
देखकर पानी पर पापी पॉलिटिक्स,
मन ही नहीं, अरमान भी सुख गए मेरे,
समंदर कर दिया हवाले तुम्हारे,
फिर-भी बूंद-बूंद को तरसते है सारे,
गीली धरती को सुखा बना रहे है,
हो-हल्ला मचाकर, बस जता रहे है,
प्यासों की आँखों में आसुओं का सैलाब ला रहे है |
अनमोल का मोल लगाकर,
कुदरत के अमूल्य तोहफ़े को,
सरे-राह नीलाम कर रहे है,
अब तुही बता ऐ ग़ालिब.... 

“कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै...??????”


कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै


लेकर अपने सूखे कंठ को
किस दरिया किनारे जाऊं मै,
सूखे-सूखे इन होठों को बताओ,
कहाँ जाकर तरबतर कर आऊं मै |
देखकर पानी पर पापी पॉलिटिक्स,
मन ही नहीं, अरमान भी सुख गए मेरे,
समंदर कर दिया हवाले तुम्हारे,
फिर-भी बूंद-बूंद को तरसते है सारे,
गीली धरती को सुखा बना रहे है,
हो-हल्ला मचाकर, बस जता रहे है,
प्यासों की आँखों में आसुओं का सैलाब ला रहे है |
अनमोल का मोल लगाकर,
कुदरत के अमूल्य तोहफ़े को,
सरे-राह नीलाम कर रहे है,
अब तुही बता ऐ ग़ालिब.... 

“कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै...??????”


कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै


लेकर अपने सूखे कंठ को
किस दरिया किनारे जाऊं मै,
सूखे-सूखे इन होठों को बताओ,
कहाँ जाकर तरबतर कर आऊं मै |
देखकर पानी पर पापी पॉलिटिक्स,
मन ही नहीं, अरमान भी सुख गए मेरे,
समंदर कर दिया हवाले तुम्हारे,
फिर-भी बूंद-बूंद को तरसते है सारे,
गीली धरती को सुखा बना रहे है,
हो-हल्ला मचाकर, बस जता रहे है,
प्यासों की आँखों में आसुओं का सैलाब ला रहे है |
अनमोल का मोल लगाकर,
कुदरत के अमूल्य तोहफ़े को,
सरे-राह नीलाम कर रहे है,
अब तुही बता ऐ ग़ालिब.... 

“कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै...??????”


कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै


लेकर अपने सूखे कंठ को
किस दरिया किनारे जाऊं मै,
सूखे-सूखे इन होठों को बताओ,
कहाँ जाकर तरबतर कर आऊं मै |
देखकर पानी पर पापी पॉलिटिक्स,
मन ही नहीं, अरमान भी सुख गए मेरे,
समंदर कर दिया हवाले तुम्हारे,
फिर-भी बूंद-बूंद को तरसते है सारे,
गीली धरती को सुखा बना रहे है,
हो-हल्ला मचाकर, बस जता रहे है,
प्यासों की आँखों में आसुओं का सैलाब ला रहे है |
अनमोल का मोल लगाकर,
कुदरत के अमूल्य तोहफ़े को,
सरे-राह नीलाम कर रहे है,
अब तुही बता ऐ ग़ालिब.... 

“कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै...??????”


कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै


लेकर अपने सूखे कंठ को
किस दरिया किनारे जाऊं मै,
सूखे-सूखे इन होठों को बताओ,
कहाँ जाकर तरबतर कर आऊं मै |
देखकर पानी पर पापी पॉलिटिक्स,
मन ही नहीं, अरमान भी सुख गए मेरे,
समंदर कर दिया हवाले तुम्हारे,
फिर-भी बूंद-बूंद को तरसते है सारे,
गीली धरती को सुखा बना रहे है,
हो-हल्ला मचाकर, बस जता रहे है,
प्यासों की आँखों में आसुओं का सैलाब ला रहे है |
अनमोल का मोल लगाकर,
कुदरत के अमूल्य तोहफ़े को,
सरे-राह नीलाम कर रहे है,
अब तुही बता ऐ ग़ालिब.... 

“कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै...??????”