सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के झूटे उसुलों से और खुशबु आ नहीं सकती कागज़ के फूलों से, अर्थ और अनर्थ में महज़ यही फ़ासला इस दौरे-जहाँ का अमिट कटु सत्य है | वर्तमान परिवेश में देश और देशवासियों का रुख किस दिशा की और है यह एक विकट प्रश्न है |
ज्यादा गहराई में ना जाते हुए हम अपने देश की उन्नति और अवनति का विश्लेषण सतही स्तर पर करें तो पाते है कि हमारे चारों ओर सिर्फ बाबाजी का ठुल्लू ही विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में मशरूफ है | आज देश में बलात्कार,गैंगरेप,आतंकवाद,चोरी-डकेती,लुट,सरेआम-क़त्ल,मारा-मारी,जघन्य हमले,राजनीति,कूटनीति,भ्रष्टनिति,छल-कपट,गबन,घपले-घोटाले और जाने क्या-क्या, जैसे मासूम नवजात बच्चों को पैदा करके फेंक देना या मंदिर-मस्जिद में छोड़ देना, झाड़ियों में फेंक देना, जिन्दा जमीन में गाड़ देना, चाइल्ड,गर्ल चाइल्ड, वीमेन पेट्रोलिंग, वेश्यावृत्ति,कालाबाजारी, इंसानों की खरीद-फरोक्त,फर्जीवाड़ा,माता-पिता का क़त्ल,धमकियों भरे फ़ोन कॉल्स,खुनी संघर्ष,न्याय-अन्याय के सालों चलने वाले अदालती मुकदमे,फिल्मो और टीवी प्रोग्राम्स में अश्लीलता,नए-नए धुम्रपान और नशे की नवयुवाओं में बड़ती लत या स्टाइल या फ़ेशन या कल्चर या कुछ और राम जाने क्या-क्या घटित हो रहा है ?
कहीं महान लोगों को सम्मान और कहीं कमीने लोगों का अपमान सब कुछ इस अम्बर के निचे, कहीं हार तो कहीं जीत कहीं मैच फिक्सिंग तो कहीं लाइफ फिक्सिंग (सुपारी देना), खुनी रिश्तों में हेवानियत और वहशीपन, यह देश के हालात है या इंसान की दुर्दशा, संत-साधुओं के घिनोने कुकर्म और करोड़ों का खेल,अंधविश्वास या हकीकत राम जाने | मंदिर-मस्जिद,चर्च,गुरूद्वारे के वाद-विवाद, विविध धर्मों के साथ खिलवाड़ या धर्म ने खिलवाड़,पूरब-पश्चिम हो या उत्तर दक्षिण या हो मध्य प्रदेश हर दिशा से पीढ़ी दर पीढ़ी मानवता पर बस होती है बहस |
मै बड़ा या तू बड़ा हर कोई जिद पर है अड़ा, कहीं,बाप बड़ा ना भय्या, सबसे बड़ा रुपय्या, कहीं मासूमों का कत्लेआम, तो कहीं नेताओं के बड्डे पार्टी में करोड़ों की धूमधाम,कोई अपने दुखों से दुखी तो कोई दूसरों के दुखों से दुखी और कोई तो दूसरों के सुखों-दुखों से सुखी-दुखी, आम,गरीब,मजबूर,दबी-कुचली जनता भूखी-भूखी और हर तरफ आज मानवता है झुकी-झुकी | कोई एक मुद्दा नहीं, अनगिनत मुद्दों से भरा पूरा जहान है | पार्लियामेंट में अफ़रातफ़री, कोई सोते हुए देश चला रहा है तो कोई देश को सुलाने में लगा हुआ है |
Source - Anurag Shrivastav
कहीं मरीजों के अंगो की धांधली,कहीं डर्टी पॉलिटिक्स तो कहीं शिक्षा की आड़ में टीचर्स की काली करतूतें,कहीं टेक्सी ड्राइवर्स की अश्लील हरकतें, कहीं धर्म के नाम पर लुटी जा रही है इज्जतें, कैसे कमजोर-मिलावटी इमारतों तले दब कर मर रहा है इंसान, जैसे यह युग मिलावट का हो, दूध-तेल,घी,अनाज,विश्वास,प्रेम,भावना हर तरफ मिलावट खोरों का दौर है और क्या क्या हो रहा राम जाने | मुर्दे को मुक्ति नहीं मिलती,घरेलु हिंसा में पिसती जा रही नारी, क्यूँ आज नाबालिग बच्चियां झूले के बजाये फांसी के फंदे पर झूल रही है |
पत्रकारिता में मिशन,कमीशन,मिशन-कम-कमीशन का झमेला समझ से परे है | योग्य के योग के ठिकाने नहीं और अयोग्य को शीर्ष पे बिठाकर नवाज़ा जा रहा है | यह मेरी व्यक्तिगत भावना नहीं अपितु सर्वस्व मानवजाति के लिए चिरस्मरणीय चिंता का विषय है, हम चाहते है इन सभी मुद्दों में से किसी एक मुद्दे पर ही सही आज का मानव थोड़ा गौर जरुर फरमाए,तो शायद इश्वर की बनाई इस अदभुत और अलौकिक श्रृष्टि का सही मायने में उद्देश्य पूर्ण हो जाएगा |