Zero Figure Girl: शून्य की कहानी, शून्य की जुबानी







भारतीय इतिहास में शून्य के आविष्कार को लेकर भांति-भांति की भ्रांतियां और ताबड़तोड़ ख्यालों के झमेले रहे है | कहते है शून्य को तीन बार तीन अलग-अलग सभ्यताओं इराक की बाबिल सभ्यता, माया सभ्यता और पांचवी शताब्दी में आर्यभट द्वारा दक्षिण भारत में इजाद किया गया और मजे की बात तो यह है कि दो बार शून्य जैसी नायाब “जीरो फिगर” वाली बॉडी को किसी धुंधली याद की तरह भुला दिया गया परन्तु आर्यभट साहब की गणित के प्रति दीवानगी ऐसी छाई की फिर शून्य ने सम्पूर्ण विश्व में लोगों के जहनो-जीया पर हुकूमत करना शुरू कर दिया |



आज शून्य ने अपने रूप और सौन्दर्य का डंका पुरे विश्व में बजा रखा है और लोग इसका यूज़ बड़े ही विचित्र और विशिष्ट तरीके से कर रहे है | वेस्टर्न कल्चर की महिलाओं पर इसका जादू इस क़द्र छाया कि उन्होंने शून्य को अपनी हेल्थ पर ही यूज़ कर लिया और एक नया नाम दिया “जीरो फिगर बॉडी”, फिर देखते ही देखते वर्ल्डवाइड इसकी दीवानगी लड़कियों और महिलाओं में एक जूनून बन गई | भारतीय नारी भी भला इस सम्मोहन से कैसे बचती, चूँकि सम्पूर्ण मानव प्रजाति तो नकलची बन्दर की ही उपज है | ख़ास बात तो यह है कि भारतीय सिनेमा की खुबसूरत और कमसिन नायिकायें जैसे करीना कपूर (बैबो), प्रियंका चौपड़ा (पिग्गी चोप्स), दीपिका पादुकोण (साउथ बाला), अनुष्का शर्मा (नुश्की टू नुशेश्वर) बिपाशा बसु (बिप्स ) शिल्पा शेट्टी (बिग ब्रदर विनर), कंगना रनौत (मिस परफेक्शनिस्ट) और ऐश्वर्या राय बच्चन आदि ने कमर तोड़ वर्जिस कर किसी कोट हैंगर की माफिक “जीरो फिगर बॉडी” बनाई और भारत में शून्य को एक नई पहचान दिलाई |



शून्य पर बात यहीं ख़त्म हो जाती तो क्या कहने थे, जैसे-जैसे कारवां बड़ता गया वैसे-वैसे शून्य का जादू परवान चड़ता गया और बैंकिंग सेक्टर में शून्य का एक नया नामांकरण किया गया “जीरो परसेंट इंटरेस्ट” जो कि जनता यानी बैंकिंग कस्टमर्स को लुभाने और आर्थिक भोझ तले दबाने के लिए काफी था | विश्व में अगर सबसे बड़े कोई “लीगल लुटेरे” हैं तो वो हैं बैंक्स, जो आपको आइना दिखाकर लुटते है और आप की अपनी खून-पसीने की कमाई को एक पल में आप से ले लेते है और देते समय सेकड़ों नियम झाड़ते है | खैर इसमें शून्य का क्या कसूर, ये तो जहां भी बैठती है “राइ का पहाड़” बना देती है और कहते है “आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है” बस इसी तर्ज पर शून्य अपना अलग-अलग रूप दिखाती-रहती है |



शून्य है बड़ी चंचल और चालाक, सम्पूर्ण ब्रहम्मांड में विद्यमान होते हुए भी इसकी चाल, चरित्र और चेहरा समझ पाना बहुत ही टेड़ी खिर है | चूँकि शिक्षा में शून्य का अहम् और अतुल्य योगदान होने के कारण इसे शिक्षा से नकारा नहीं जा सकता | शून्य के इसी चाल-चलन से कितने ही विद्यार्थियों का भविष्य बन गया तो कितने ही इसकी एंट्री से शिक्षा से आउट हो गए | यहाँ भी शून्य को एक नया नाम दिया गया “अंडा और डबल अंडा” और “जीरो मार्क्स”, जो शिक्षा के क्षेत्र में खासा प्रचलित है |



बड़ी असाधारण और विचित्र-सी बात है शून्य की उत्पत्ति परन्तु आज इसके बिना जिंदगी जैसे शून्य-सी हो जाती है, जैसे शेर मांस के बिना नहीं रह सकता ठीक उसी प्रकार मानवजाति शून्य के बिना नहीं रह सकती | शून्य के अपने नफ़ा-नुक्सान है पार्लियामेंट में इसे “जीरो ऑवर” के नाम से जाना जाता है | यह एक “क्रिटिकल मोमेंट” होता है जो क़ानून की नियमावली में नहीं पाया जाता परन्तु पार्लियामेंट के दोनों सदनों में बखूबी उपयोग किया जाता है | यह तो बिलकुल वही बात हुई की क़ानून अंधा होते हुए भी न्याय करता है जो कि शून्य का ही रूप है | सरल शब्दों में कहें तो अंधे जीव के लिए सब कुछ शून्य ही होता है |

यह कहना कतई गलत न होगा कि शून्य की खोज किसी भी ज्ञानी जीव ने की हो मगर ख़ोज बड़ी ही कमाल की, की है | यह तो महज शून्य के चंद अचीवमेंट्स के ट्रेलर है पूरी फिल्म तो अभी बाकि है मेरे दोस्त (पाठक) |


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