आज के इस आधुनिक युग में जहां महिलाओं के लिए सरकार हो या समाज दोनों ही नारी शक्ति के विकास और समानता के लिए नई-नई योजनाओं को क्रियान्वित कर रहे है वहीँ एक प्रश्न ज़हन में समुंद्र के तूफ़ान सा उठता है कि क्या महिलायें सही दिशा में प्रगति कर रही है ? यह प्रश्न सम्पूर्ण महिला वर्ग के लिए ठीक नहीं होगा | इस प्रश्न से मेरा तात्पर्य समाज में महिलाओं के उस “विशेष वर्ग”से है जो आज सिर्फ पाश्चात्य सभ्यता को सर्वस्व समझ बैठा है |
वर्तमान दौर में समाज में महिलायें आज घर से बाहर निकल कर नौकरी कर रही है,कामकाज कर रही है,जीवन यापन के नए आयाम खोज रही है यह समाज के लिए सार्थक हर्ष का विषय है कि – “नारी तू नारायणी” और भारतीय संस्कृति के जिवंत होने का वास्तविक प्रमाण |
मगर पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते हुए इरादों से तो एसा लगता है जैसे नारी आजादी के नाम पर ये कैसी ज़िंदगी जी रही है| समाज में नारी के इस विशेष वर्ग में आज की नारी बीड़ी-सिगरेट,तम्बाकू,दारू गांजा,चरस और पता नहीं कितने प्रकार के नशे की और तेजी से बड़ रही है |
समाज में दिखावे के नाम पर अश्लीलता,अय्याशी और हेवानियत दिखाई जा रही है | स्वयं नारी वर्ग को इस विशेष वर्ग की और ध्यान देने के जरुरत है, क्यूंकि इस विशेष वर्ग की हर नारी किसी न किसी की माँ है,किसी न किसी की बहन है और किसी न किसी की पत्नी है |
अगर हमने यानी समाज और सरकार ने आज नारी के इस विशेष वर्ग की और विशेष ध्यान नहीं दिया तो आज की ये विशेष वर्ग की नारी इस क्षेत्र में मीलों दूर निकल जायेगी जो कि समाज के लिए हितकारी नहीं होगा |
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